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________________ इत्याह्वानादिकं कर्म क्रियते श्रेयसे मया। तत्सर्वं पूर्णतामेति, शान्तिकान्तिभिरादरात्।। ॐ आं क्रों ह्रीं शुभ्रवर्ण सर्वाभरणभूषित शाकिनी-डाकिनी-भूत-व्यन्तर-पिशाच-राक्षसग्रहयूथच्छेदन-भेदन-ताडनकर्म समर्थाक्षरय सकल स्वर.........नामधेयस्य.........सर्वशान्तिं विधेहि स्वाहा।। शान्ति धारा। अथ ऊँकार पूजा पद्मासनं पद्मनिभं सुगन्धं, प्रकृष्टवर्णं परमात्मरूपम्। कोट्यर्क चन्द्रोज्ज्ल चारुदेहं, स्वाभीष्टसिद्ध्यै प्रणवं भजामि।। ऊँ आं क्रों ह्रीं पंचवर्णान्वित ऊँ कार बीज! अत्र एहि-एहि संवौषट्। ऊँ आं क्रों ह्रीं पंचवर्णान्वित ऊँ कार बीज! अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ आं क्रों ह्रीं पंचवर्णान्वित ॐ कार बीज! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट्। अथाष्टक ॐ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ॐकाराय जलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय चळं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय फलं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं परमज्योति स्वरूपानन्तचतुष्टयात्मकाय ऊँकाराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 410
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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