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________________ पंच महाव्रत समिति जु पांच, तीन गुप्ति मिलचारित सांच। यों तेरहविध चारित जान, पूजों मनवच अध्य सुआन।। ओं ह्रीं त्रयोदशप्रकारसम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला दोहा सम्यक्चारित मोक्ष को, कारण और न कोय। पापपन्थ तज सर्व ही, चारित की विधि जोय।। बेसरी छन्द सम्यक्चारित भवदधिनावा, सिद्धक्षेत्रधरि देनस्वभावा। परिग्रहधारि लहे ना याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। मोहराय जीतन को जावे, जो चारित्र कवच तन लावे। ध्यावत हैं सुरखग नरयाको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। सम्यक्चारित मोक्ष निशाना, या बिन होय न कर्मन हाना। या बिन मोक्ष न होवे काको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। चरितग्रहण वीर का कामा, कायर पै न सधे गुणधामा। निर्मोही धारत हैं याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। शंकासहित जोव बलहीना, ते कँह धार सकें यह दीना। महापुरुष धारत हैं याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। कामीजन तो देखत लज्ज, शीलवान धर्मी जन सज्जें। चारित उपमा दीजे काको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। चारित को चक्रीधर चाहें, सुर खग इन्द्र भावना भाहें। निकटभव्यधारत हैं याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। चारित चरमशरीरी धारें, चारित से कर्मारि विदारें। कामदेव से धारत याको, मैं पूजों मन वच तन ताको।। 338
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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