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________________ ऊँ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। कंचन दीप कराय, कदलीसुत बाती करों। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं।। ऊँ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। अगर कपूर मिलाय, लोंग धूप बहु विस्तरौं। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं।। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। चोच मोच फल पाय, सरस पक्क लीजे हरों। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं।। ऊँ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। नीरादिक लै आय, अर्घ देत पातक हरो। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं।। ऊँ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जल चन्दन ले फूल और अक्षत घने। दीप धूप नैवेद्य सुफल मनमोहने।। गीत नृत्य गुण गाय अर्घ पूरण करो। पुष्पदन्त जिन पूज शुक्र दूषण हरौ। ऊँ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय महाघ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला मन वच तन ध्यावो, पाप नसावो, सब सुख पावो अघ हरणं। ___ ग्रह दूषण जाई, हर्ष बढ़ाई, पुष्पदन्त जिनवर चरण।। (पद्धड़ी छन्द) जय पुष्पदन्त, जिनराज देव, सुर असुर सकल मिल करहि सेव। 253
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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