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________________ मलयागिर चंदन दाह निकन्दन, कुमकुम शुभ ले घनसारं। चरचों जिन चरनं, भव तप हरनं, मनवांछित सब सुख निकरं ।। ऋषभ अजित सम्भव, अभिनंदन, सुमति सुपारस नाथ वरं। शीतलनाथ श्रेयांस जिनेश्वर, पूजत सुरगुरु दोष हरं।। ऊँ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। सरल शाली कृष्ण जीरक, वसुमती जो मन हरं। उभय कोटक, अरु अखण्डित, अखय गुण शिवपद धरं।। ऋषभ अजित सम्भव, अभिनंदन, सुमति सुपारस नाथ वरं । शीतलनाथ श्रेयांस जिनेश्वर, पूजत सुरगुरु दोष हरं ।। ऊँ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। चम्पकं चमेली, करन केतकी, मालती मरुवो मोल सरं । कमल कुमुद गुलाब कुन्दजु, सरन जुही शिव-तिय वरं।। ऋषभ अजित सम्भव, अभिनंदन, सुमति सुपारस नाथ वरं। शीतलनाथ श्रेयांस जिनेश्वर, पूजत सुरगुरु दोष हरं । ऊँ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। घेवरहि सु बावर पुवा पुरेयै, मोदक फैनी घेवरं। सुरहि घृत पय शर्कराजुत, विविध चरु क्षुध क्षयकरं ।। ऋषभ अजित सम्भव, अभिनंदन, सुमति सुपारस नाथ वरं। शीतलनाथ श्रेयांस जिनेश्वर, पूजत सुरगुरु दोष हरं।। ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 249
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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