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________________ जयमाला मंगल ग्रह हरनं मंगल करनं, सुखकर शिव-रमणी वरन। आतम हित करनं भवजल तरनं, वासुपूज्य सेवत चरन।। पद्धति छन्द इन्द्र नरेन्द्र खगेन्द्र जु देव, आय करें जिनवर की सेवा वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।।टेक।। विजया जननी मन हर्षाय जनक जु वासुपूज्य सुखदाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।। शुभ लक्षण कर लक्षित काय, चम्पापुर जन में जिनराय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।। महिषा अंक चरनमें परो, देखत सबका संशय हरो। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।। फाल्गुन असि जो चौदश जान, हो वैराग्य सु धरियो ध्यान। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।। घता घातिया केवल पाय, जैनधर्म जगमें प्रगटाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।। षट शत एक मुनीश्वर भयो, गिरि मन्दार शिव लहि गयो। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।। मंगल हेतु जजों जिनराय, मंगल ग्रह दूषण मिट जाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।। धत्ता छन्द पूजन प्रभु की कीजे, दोष हरीजे, छीजे पातक जन्म जरा। 243
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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