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________________ जयमाला चंदप्रभु चरणं सब सुख भरणं करणं आतम हिल अतुल। दर्द जु हरण भव जल तरणं, मरन हरं शुभकर विपुलं।। भव्य मन हृदय मिथ्यात तम नाशकम्। केवलज्ञान जग-सूर्य प्रतिभासकम्।। चंद्रप्रभु चरण मन हरण सब सुखकरं। शाकिनी भूत ग्रह सोम सब दुखहरं।। वर्धनं चंद्रमा धर्म जलानिधि महा। जगत सुखकार-शिव माग प्रभने महा।। चंद्रप्रभु चरण मन हरण सब सुखकरं। शाकिनी भूत ग्रह सोम सब दुखहर।। ज्ञात गम्भीर अति धीर वर वीर हैं। तीनहूँ लोक सब जगतके मीर है।। विकट कंदर्पको दर्प छिन में हरा। कर्म वसु पाय सब आप ही तैं झरा।। चंद्रप्रभु चरण मन हरण सब सुखकरं। शाकिनी भूत ग्रह सोम सब दुखहर।। सोमपुर नगर में जन्म प्रभु ने लहा। क्रोध छल लोभ मद मान माया दहा।। चंद्रप्रभु चरण मन हरण सब सुखकरं। शाकिनी भूत ग्रह सोम सब दुखहरं।। देह जिनराजकी अधिक शोभा धरे। स्फटिकमणि कांति तांहि देख लज्जा करे।। चंद्रप्रभु चरण मन हरण सब सुखकरं। शाकिनी भूत ग्रह सोम सब दुखहरं।। आठ अरु एक हजार लक्षण महा। दाहिने चरणको निशपति गह रहा।। चंद्रप्रभु चरण मन हरण सब सुखकरं। शाकिनी भूत ग्रह सोम सब दुखहर।। कहत ‘मनसुख' श्री चन्द्रप्रभु पूजिये। सोम दुख नाशके जगत भय धूजिये।। चंद्रप्रभु चरण मन हरण सब सुखकरं। शाकिनी भूत ग्रह सोम सब दुखहरं।। ऊँ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। पाप ताप के नाश को, धर्मामृत रस कूप। चंद्रप्रभु जिनं पूजिये होय जो आनंद भूप।। इत्याशीर्वादः 239
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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