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________________ जयमाला - दोहा अष्टम क्षेत्र विशाल में, कार्तिक, फाग, अषाढ़। देवन का भक्ति करों, रचि-रचि पद अतिगाढ़। (शिखरणी) आठमों द्वीप में योजना सार है, एक सौ त्रेसठ कोडि विस्तार है। भवन वावन्न में मूर्ति जिन पूजिये, मन वचन काय से तन मई हूजिये।।2।। चार दिशि चार गिरि धूम्रमयी राजहीं, जास को देखते नील गिरि राजहीं। एक एक ओर चउ वावरी सुजलभरी, श्वेत रत्न की शिला मनो विराजत खरी।।3।। एक एक वापिका मध्यदधि गिरि मुखं, वर्ण उज्जवल दिखो पिण्ड हिम सन्मुखं। वापिका कोण दो में शिखर दो लसें, रक्तवर्ण देश साँझ रंग लाज कर लसें।।4।। तीन दश गिरि महाँ एक एक दिश धरें, चहँ दिशा माँहि पर्वत यहाँ सुन्दरे। भवन बावन्न में मूर्ति जिन पूजिये, मन वचन काय से तन मई हूजिये।।5।। बावनों पर्वतों पर हैं जिन मन्दिरा, रतन मई दीप तें सूर्य की सी धरा। एक प्रासाद में बिम्ब शत आठ हैं, बाल मनु तेज सम रत्न मई ठाठ हैं।।6।। अर्द्धशत पाँच धनु पद्म आसन धरें, हैं वृषभनाथ वृष रूप मय अवतरें। ज्यों समवशरण में नाथ छवि देखिये, मान भाव नाश को मन थंभ पेखिये।॥7॥ बिम्ब को देखते मोह नश जात है, वीतरागता प्रभात में जु तम विलात है। मन विषे शुद्धता बहुत दुर्लभ कही, शुद्धता के समय व्रत धारे ही।।8।। मदन्तर कषाय में व्रत धारन करें, अष्ट सोड़स वरष व्रत पूरन करें। दर्श सम्यक्त रत्न पाप घट बीच में, बन गये जौहरी सत्य की खोज में।।9।। द्वै मग्न भक्ति में पुण्य पैदा किया, चिन्ता मणि रत्न ज्यो रंक हाथे लिया। भव्य जन भव धर पूज को रचावही, भावशुद्ध नाट्यको सुआप में नचावहीं।।10। 225
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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