SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नन्दीश्वरद्वीप उत्तरदिशि अर्घ (पद्धडी) नन्दीश्वर अष्टम द्वीप सार, उत्तरदिशि अंजन गिरि निहार । जिनमन्दिर सुर पूजत सु जाय, हम जजत सु जिन पद शीश नाय ।।1। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि अंजनगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। रम्या वापी बिच जगमगाय, दधिमुख गिरि शिखर विषै सुहाय । जिनमन्दिर सुर पूजत सु जाय, हम जजत सु जिन पद शीश नाय ॥2॥ ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि रम्यावापिकामध्य दधिमुखगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। रम्या वापी मुख कोण जान, रतिकर गिरि शिखर प्रथम महान जिनमन्दिर सुर पूजत सु जाय, हम जजत सु जिन पद शीश नाय ॥3॥ ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि रम्यावापिकामध्य ईशानकोणे रतिकर गिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। रम्या वापी विदिशा विशाल, दूजे रतिकर गिरि द्युति रिशाल। जिनमन्दिर सुर पूजत सु जाय, हम जजत सु जिन पद शीश नाय ॥4॥ ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि रम्यावापिका आग्नेयकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 222
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy