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________________ श्री नन्दीश्वर द्वीप पश्चिम दिशि अर्घ दोहा नन्दीश्वर पश्चिम दिशा, अंजनगिरि पर जाय। सुरपति जिनमन्दिर जजें, हम पूजत जिन पाय।।1। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पश्चिमदिशि विजयावापिका अंजनगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। विजया वापी बीच में, दधिमुखगिरि सुख दाय। सुरपति जिनमन्दिर जजें, हम पूजत जिन पाय।।2। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पश्चिमदिशि विजयावापिकामध्य दधिमुखगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। विजया वापी कोण लख, प्रथम सु रतिकर पाय। सुरपति जिनमन्दिर जजें, हम पूजत जिन पाय।।3।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पश्चिमदिशि विजयावापिका ईशानकोण रतिकरगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। कोण विजया वापी तनों, द्वय रतिकर मन लाय। सुरपति जिनमन्दिर जजें, हम पूजत जिन पाय।।4।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पश्चिमदिशि विजयवापिका आग्नेयकोण रतिकरगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। 219)
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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