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________________ दोहा नन्दीश्वर पूरब दिशा, अंजन दधि गिरि जान। रतिकर मिल त्रोदश गनों, पूजत अघ तम हान।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिशिसंबंधी त्रयोदश जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री नन्दीश्वर द्वीप दक्षिण दिशि अर्घ - चौपाई नन्दीश्वर दक्षिण दिशि नाम। अंजनगिरि पर श्री जिन धाम। सुर सुरपति नित जजत सुजाय। हम जिन घर पूजत प्रभु पाय।।1।। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे दक्षिणदिशि अंजनगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। अरजा वापी बीच सु जेह। दधिमुखगिरि पर श्री जिन गेह।। सुर सुरपति नित जजत सुजाय। हम जिन घर पूजत प्रभु पाय॥2॥ ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे दक्षिणदिशि अरजावापिकामध्य दधिमुखगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। अरजा वापी कोण सु आदि। रतिकर पर जिन भवन अनादि।। सुर सुरपति नित जजत सुजाय। हम जिन घर पूजत प्रभु पाय।।3।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे दक्षिणदिशि अरजावापिका ईशानकोणे रतिकर गिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। अरजा वापी दूजो कोन। रतिकर गिरि पर श्री जिनभोन।। सुर सुरपति नित जजत सुजाय। हम जिन घर पूजत प्रभु पाय।।4।। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे दक्षिणदिशि अरजावापिका आग्नेयकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। 216
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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