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________________ जयमाला दोहा सुरपुर नरपुर नागपुर, तीन भुवन के ईश। तिन गुण की जयमालिका गांऊँ धर कर शीश।। (त्रोटक छन्द) जिनज्ञानावरणी घात करी, निजशक्ति अनंत प्रकाश धरी। दर्शन आवरण निवार कियो, दर्शन अनन्त तब धार लियो।। फिर मोह महारिपु दुष्ट हरो, तब सुख अनन्त प्रकाश करो। अन्तरायवली जब नाश किया, तब वीर्य अनन्तप्रकाश लिया।। ये घाति चतुष्टय नाश भये, तब चार अतुष्ठयानंत लये। अबचार अघातिया शेषरहे, तिनको भी अन्तिमकाल दहे।। क्षय वेदनी अव्यावाध लहा, विधि आयुहता अवगाहगहा। हनिनाम अमूर्तिकगुण गयनं, प्रगट सो अगुरुलघुगोत्र हन।। ये आठों करम विनाश किये, गण प्रगटे आठ प्रकार लिये। जो भव में तन त्याग किया, तासे कछु ऊन शरीर लिया।। तिनके न क्षुधा न तृषा दरशे, नहिं रागद्वेष तिन्हें परशे। फिर होय न जन्मजरा मरना, स्थितिकाल अनंततहां करना।। नहिं रोग न शोक सदा तिनके, भयविस्मय व्यपतनतिनके। निद्रा नहीं खेद न स्वेदतहां, मदमोद अरति चिंतना न तहां।। त्रैलोक विलोकत हैं सु सदा, निरइच्छा इच्छा न धारकदा। निसिवासा संतसुध्यान करें, चिरकाल लगे सो करम हरें।। गणधर निज धार हृदय चरणा, तुमको ध्यात मनहरपचना। मुनिराज तुम्हें जो ध्यावत है, तुम्हरे ढिंगसो चलआवत हैं।। अहमि न्द्र सदा तुव ध्यान करें, नित चेतन की चरचा उचरें। 207
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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