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________________ दोहा नाम करम के उदय जिय, नाना नाम धरात। ताकी प्रकृति तिरानवे, सो जानो इस भांत।। गीता छन्द सित पीत श्याम अरुण हरित, ये पंच वरण बखानिये। विक्त आम्ल सु क्षार कड़वा, मिष्ट रस पन जानिये।। दुर्गन्ध और सुगन्ध दो, स्पर्श की बसु लेखिये। लहु और भारी तपत शीत, कठोर नरम विशेखिये।। दोहा चिक्कण रूक्ष मिलाय सब, वर्णादिक की बीस। ते हति के शिवपुर गये, पूजों ते जगदीश।। ऊँ ह्रीं वर्णादिकविंशतिप्रकृतिविनाशनाय सिद्धपरमेष्ठिने अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।7। दोहा संहनन छह संस्थान छह, गति पुनि चार गनीस। आन पूर्वी चार मिल, संस्थानादिक हैं बीस।। (कुसुमलता छन्द) वज्र वृषभ नाराच, वज्र नाराच दुतिय भनि। तीजा है नारच, अर्द्धनाराच चतुर्गनि।। कीलक पंचम जान, छटम स्फाटक नामा। छहो संहनन धार, जीव भटके जगधामा।। समचतुर प्रथम संस्थाना। न्यग्यो धोपरि मण्डाना।। सातिक तृतीय गनि लीजे। बावन फिर कुब्ज भनीजे।। हुंडक छठमो सो जानो। ये छह शरीर संस्थानो।। गति चार पूर्वीचारा। सुरनर पशु नारकधारा।। 203
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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