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________________ प्रत्येक पूजा - दोहा ज्ञानावरणी पंच विधि, सो तुम नाशे देव। ज्ञान प्रकाशे पंच भनि, करों तुम्हारी सेव।। (गीता छन्द) मतिज्ञानावरणी घातके, मतिज्ञान सुन्दर पाइयो। श्रुतज्ञानावरणी नाशकर, श्रुतज्ञान निज उर पाइयो।। विधि अवधि मनपर्यय सु भारी, ज्ञानावरण निवारियो। तब अवधि मनपर्यय सु भारी, ज्ञान निज उर धारियो।। दोहा केवल ज्ञानावरण हनि, प्रगटो केवल ज्ञान। लोकालोक निहारते, पूजों सिद्ध महान।। ऊँ ह्रीं पंच प्रकार ज्ञानावरणकर्मनिवारणाय सिद्धपरमेष्ठिने अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥1॥ दोहा दरशन घाटक प्रकृति नव, दरशन होन न देत। ताहि विनाश प्रकाशियो, अनन्त दरशन श्वेत।। (अडिल्ल छन्द) प्रथम चक्षुदर्शनावरण विधि जानिये। द्वितीय अचक्षुदर्शनावरण बखानिये।। तीजी अवधि दर्शनावरणी गाइये। चौथी केवल दर्शनावरण लहाइये।। दोहा सुख से सोवे सुख जगे, सो निद्रा पहिचान। टेरे से जागे न सो, निद्रा-निद्रा जान।। उठता बैठा ऊँघे सोई। प्रचला करम उदय जिय होई।। चलत फिरत जिहिं नींद सतावे। सो प्रचला प्रचला कहलावे।। जाके उदय बड़ोवल होई। नारायण प्रतिहरि समसोई।। 200
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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