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________________ (इति मन्दिर मेरु पूजा समाप्त) अथ पंचम विद्युन्माली मेरु पूजा ॥ गीता छन्द।। विद्युन्माली मेरु पञ्चम पच्छम पुष्कर दीप जी। गजदन्त वृक्ष कुलाचला वैताढि पै शुभ टीपजी।। इन आदि सकल वक्ष्यार थानक ऊपरें जिन थानजी। ते जजों थापन आदि मैं यहां भावना शुभ आनजी।।1।। ॐ ह्रीं विद्युन्मालिमेरुसम्बन्धिजिनालयानि अत्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वननम्। ऊँ ह्रीं विद्युन्मालिमेरुसम्बन्धिजिनालयानि अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।। ऊँ ह्रीं विद्युन्मालिमेरुसम्बन्धिजिनालयानि अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट् न्धिकरणं। अथाष्टक (त्रिभंगी छन्द) जल प्राशुक लाया अति हरषाया निरमल पाया सुखकारी। धर कंचन झारी भक्त उचारी नय शिव धारी गुन भारी।। यह विद्युन्माली मेरु विशाली सब अघ टाली थान सही। इनके सम्बन्धी जिन थल संधी मैं सब बन्दौं पण्य मही।।1।। ऊँ ह्रीं विद्युन्मालिमेरुसम्बन्धिजिनालयेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। हम चंदन आनी गंध जु थानी घसि शुचि पानी त्यार किया। धर रतनन झारी निज कर धारी भक्त उचारी हर्ष लिया। यह विद्युन्माली मेरु विशाली सब अघ टाली थान सही। इनके सम्बन्धी जिन थल संधी मैं सब बन्दौं पुण्य मही।।2।। ॐ ह्रीं विद्युन्मालिमेरुसम्बन्धिजिनालयेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 188
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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