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________________ मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।10। सब गिरि में परधान है, यह मेरु महान। याके अन परवार है, तहां जिनके थान।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।11॥ तीस चार वैताढ हैं, षोडश वक्ष्यार। और कुलाचल षट सही, गजदंत वृक्ष सार।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।12।। एक एक जिन थान हैं, मैं पूजों सार। ___ मेरु सुदरशन है सही, केचन वरन अपार।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।13।। दोहा मेरु मांहि मन राखिये, तहां अकृत्रिम थान। जिनके मुनि चारण तहाँ, तातै नमि पुनि आनि।।14।। ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरुसम्बन्धिजिनालयेभ्यो पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा।। (इति सुदर्शन मेरु पूजा सम्पूर्ण) अथ द्वितीय विजयमेरु पूजा (गीता छन्द) खंड धातकी पूर्व दिशको विजय मेरु सुथान है। तिस ऊपरै जिनधाम षोडश अकीर्तन पुन धाम है।। इन आदि और कुलाचलादिक मेरु संबंधी सही। जिन थान कू यहाँ थापि पूजू भक्त तै पुनकी मही।।1। ऊँ ह्रीं विजयमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालयानि! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वननम्। ऊँ ह्रीं विजयमेरुसम्बन्धिषोडशजिनालयानि! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनम्। 169
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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