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________________ ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चंदन कपूर मिलाय केसर, नीरसों घसि लाइये। जिनराज पाप विनाश हमरे, भवाताप मिटाइये।। सम्मेदगढतें मुनि असंख्ये, कर्म हर शिवपुर गये। सो थान परमपवित्र पूजों, तासु फल पुनि संचये।। ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। चन्द्र के सम ल्याय तन्दुल, कनकथारन में भरों। अक्षय सु पद के कारणं, जिनराजपद पूजा करों।। सम्मेदगढतें मुनि असंख्ये, कर्म हर शिवपुर गये। सो थान परमपवित्र पूजों, तासु फल पुनि संचये।। ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। कुन्द कमला दिक चमेली, गन्ध पर मधुकर फिरें। ___ मदनबाण विनाशवे को प्रभुचरण आगे धरें।। सम्मेदगढतें मुनि असंख्ये, कर्म हर शिवपुर गये। सो थान परमपवित्र पूजों, तास फल पुनि संचये।। ओं ह्रीं असंख्यातमुनि सिद्धपद प्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। 149
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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