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________________ ___13. धर्मनाथ, सुदत्तकूट (चौपाई छन्द) कूट सुदत्त महाशुभ जान, श्रीजिन धर्मनाथ को थान। मुनि कोड़ाकोडि उनईस, और कहे ऋषि कोडि उनीस।। लाख जु नव नौसहस सुजान, सात शतक पंचानव मान। मोक्ष गये वे कर्मन चूर, निशदिन ताहि नमो भरपूर।। महिमा जाकी अतुल अनूप, ध्यावतवर इन्द्रादिक भूप। शोभित महाअचलपद पाय, पूजों, आनदमंगल दाय।। दोहा- परम पुनीत पवित्र अति, पूजत शत सुरराय। तिह थानक को देखकर, मोतीसुत गुण गाय। पावन परम सुहावनों, सब जीवन सुखदाय। सेवत सुर हिर नर सकल, मनवांछित फलदाय।। ओं ह्रीं सुदत्तकूटतः श्रीधर्मनाथ जिनेन्द्रादि उन्नीस कोड़ाकोडि उन्नीसकोडि नौ लाख नौ हजार सातसौ पंचानवे मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 14. शान्तिनाथ शान्तिप्रभ कूट (सुगीतिका छन्द) श्री शांतिप्रभ है कूट सुन्दर, अतिपवित्र सु जानिये। श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र जॅहते, परमधाम प्रमानिये।। नव जु कोड़ाकोडि मुनिवर, लाखनव अब जानिये। नौ सहस नवसै मुनि निन्यावन, हृदय में धर जानिये।। 143
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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