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________________ सुरतरु के सम पुष्प अनूपम लीजिये । कामदाहदुखहरण चरण प्रभु दीजिये ।। पूजों शिखरसमेद सु, मन वच काय जी। नरकादिक दुख टरें, अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं विंशतितीर्थंकराद्यसंख्यातमुनि सिद्धप्रदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः कामवाणविध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। कनकथार नैवेद्य सु षटरसतें भरें। देखत क्षुधा पलाय सु जिन आगे धरे।। पूजों शिखरसमेद सु, मन वच काय जी। नरकादिक दुख टरें, अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं विंशतितीर्थंकराद्यसंख्यातमुनि सिद्धप्रदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। लेकर मणिमय दीप सुज्योति प्रकाश है। पूजत होत सु ज्ञान मोहतम नाश है। पूजों शिखरसमेद सु, मन वच काय जी । नरकादिक दुख टरें, अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं विंशतितीर्थंकराद्यसंख्यातमुनि सिद्धप्रदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। दशविध धूप अनूप जगनि में खेवहूं। अष्टकर्म को नाश होत सुख लेवहूं।। पूजों शिखरसमेद सु, मन वच काय जी। नरकादिक दुख टरें, अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं विंशतितीर्थंकराद्यसंख्यातमुनि सिद्धप्रदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। एला लोंग सुपारी श्रीफल लाइये। फल चढ़ाय मन वांछित शिवफल पाइये।। पूजों शिखरसमेद सु, मन वच काय जी। नरकादिक दुख टरें, अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं विंशतितीर्थंकराद्यसंख्यातमुनि सिद्धप्रदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा। 136
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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