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________________ अन्तकृतांग दशांग महाअँग, अष्टम यामधि यों लिख पाय। इक इक जिनबारे अन्तःकृत, दश दश केवलि कथन चलाय।। या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय। जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ॐ ह्रीं अन्तःकृद्दशांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अनुत्तरोत्पादक दशांग अँग, तामें इक इक जिनकी बार। दश दश मुनि अति सहो उपद्रव, गये अनुत्तरयों लखसार।। ___ या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय। जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ऊँ ह्रीं अनुत्तरोत्पादकदशांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। प्रश्न व्याकरण अंग विषे, या, गई वस्तु इत्यादि बताय। जीवन मरण सौख्य दुख की विधि, सब प्रश्नों के भेद दिखाय।। या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय। जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ऊँ ह्रीं प्रश्नव्याकरणांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। सूत्र विपाक अँग एकादश, तामें कर्म विपाक बखान। तीव्र मन्द भावतें बाँधे, सो रस दे इत्यादि सुजान।। या अंग रहस सकल ही पावें, उपाध्याय हैं सोय। जिनके पद वसुद्रव्य थकी भवि, पूजो मन शुध होय। ॐ ह्रीं विपाकसूत्रांगज्ञानसहितोपाध्यायपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 1343
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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