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________________ आपतें गुनी तिन, कोविनय जे करें, ते महाव्रत को, ओपल्यावें। विगरनबनी किये, हानिसबगुणन की तासतें देखिबुधि, मानढावें।। सकलसंजमतनी, वाढिदिढ है यही जतन तें, गुनी, याहि आने। जीयको धीर व्रतधार आचार्य हैं, नमों तिनचरनफल पाप भाने।। ऊँ ह्रीं विनयतपः सहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। आपतें महंत गुणधार हैं जे जती, तथाश्रुतदेव महासौख्यदाई। तिनहिं वंदगीरूप, परणती जानिये, सोइवैयावृत्यवा निगाई। वृत्तऐसोबने, मोक्षमारंगलहे, होयमन्दमोहयह, रीतिठाने। जीयको धीर व्रतधार आचार्य हैं, नमों तिनचरनफल पाप भाने।। ऊँ ह्रीं वैयावृत्यतपः सहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। रैनदिन वानि जिन, पाठ मुखतें करें, तथा उपदेश दे, हरष लाई, उरविषं वानि जिन सदा चिन्तनवन करें, रहे जिन आनि में भक्ति भाई। करें गुरुपाद परसन विनै ठानिके, याविधी पांच स्वाध्याय आने। जीयको धीर व्रतधार आचार्य हैं, नमों तिन चरनफल पाप भाने।। ऊँ ह्रीं स्वाध्यायतपः सहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। त्याग तन को करें, वृत्त ऐसो धरें, सूर उपसर्गते, नाहिं भागे, लिखें कर्मकेठाठ दुख सुखसहे गत में छाडि पर मोहनिज मांहिं जागे। राग तन मांहि सो दिढत पानांहि व्युत सर्ग तप धारितन प्रीतिहाने। जीयको धीर व्रतधार आचार्य हैं, नमों तिनचरनफल पाप भाने।। ऊँ ह्रीं व्युत्सर्गतपः सहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 1335
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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