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________________ श्री पंचपरमेष्ठी विधान (श्री कविवर पं. टेकचंदजी कृत) दोहा मनरंजन भंजन करम, पंच परम गुरु सार। पूजत हैं सुर नर खगा, पावत हैं भवपार।। सोरठा प्रथमदेव अरिहंत, गर्भ आदि षटमास के। मणिमय नगर करन्त, पीछे जिन अवतार ले।। चौपाई छन्द पर परजाय छांडि जिनराय, गरभ वि अवतार धराय। तब षोडश सुपना मा लेय, तिनकी कथा सुनो पुनि जेय।। अडिल्ल छन्द ऐरावत गज वृषभ, सफेद सुजानिये। सिंह पहुप की माल, लक्ष्मि हित दानिये।। पूरण शशि रवि कुम्भ, दोय शुभ देखिया। मच्छ जुगल जल थान, केलिजुत पेखिया।। पद्धरि छन्द सरवर कमलन करि पूर्ण जोय, जलराशि समुद्र फिर लख्यो सोय। सिंहासन सुरग विमान जान, धरणेदर देख्यो जानमान।। गीता छन्द रतनराशि निहार अगनी, धूम बिन जोई सही। ये स्वप्न लखि मा हरष पायो, फेरि जिन जन्में सही।। 1313
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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