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________________ जयमाल। (पद्धरि छन्द) सुर-नर-मुनिगण गावत जय-जय, श्री आदीश्वर ध्यावत जय-जय। अजितनाथ जिनराज सु जय-जय, सब वेदन सिरताज सु जय-जय। सम्भवजिन जगनायक जय-जय, गुणमंडित अघघातक जय-जय। श्री अभिनन्दन देव सु जय-जय, करत अमरगण सेव सु जय-जय।। सुमति सुमति दातार सु जय-जय, भविजीवन-सुखकार सु जय-जय। पद्मप्रभ शिवदायक जय-जय, मुकतिवधू वरनायक जय-जय।। श्री सुपाश्व वरज्ञान सु जय-जय, लोकालोक सु ज्ञायक जय-जय। चन्द्रप्रभ द्युति-चन्द्र सु जय-जय, पूजत पातक मन्द सु जय-जय।। पुष्पदन्त परमेश्वर जय-जय, पूजा करत सुरेश सु जय-जय। श्री शीतल जिनराज सु जय-जय, छत्र सु तीन विराजित जय-जय।। श्री रेयांस जिनेन्द्र सु जय-जय, पूजत सर्व सुरेन्द्र सु जय-जय। बजत दुन्दुभी-साज सु जय-जय, वासुपूज्य जिननाथ सु जय-जय।। विमल शीश पर अमर सु जय-जय, ढोरत चौसंठ चमर सु जय-जय। ज्ञान अनन्तों पाय सु जय-जय, श्री अनन्त जिनराज सु जय-जय।। धर्मनाथ पद परसत जय-जय, शिवसुन्दरि को दरसत जय-जय। शान्ति शान्ति-करतार सु जय-जय, भवि जीव आधार सु जय-जय।। कुन्थुनाथ सुखकारण जय-जय, श्री परमेश्वर तारण जय-जय। 1305
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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