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________________ जय पूजत जिन-पद धार सु दे कें, सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें । ऊँ ह्रीं समवसरणस्थ-केवलिजिनप्रतिमाभ्यः दीपं निर्वपामीति स्वाहा। जय धूप मनोहर खेय दशांगी सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। जय कर्म जरें जिनपूज अष्टांगी सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें । जय पद्म-द्रह को नीर सु ले के सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें । जय पूजत जिन-पद धार सु दे कें, सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें । ऊँ ह्रीं समवसरणस्थ-केवलिजिनप्रतिमाभ्यः धूपं निर्वपामीति स्वाहा। जय उत्तमफल जगमाहिं सु जेते सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। जय पूज जिनेश्वर शिवफल देते सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें । जय पद्म-द्रह को नीर सु ले के सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें । जय पूजत जिन-पद धार सु दे कें, सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। ॐ ह्रीं समवसरणस्थ- - केवलिजिनप्रतिमाभ्यः फलं निर्वपामीति स्वाहा। जय जल-फल- - अघ्य चढ़ाय सु सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। जय ‘लाल’ सदा जिन-पूजत प्राणी ज्ञानी सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। जय पद्म-द्रह को नीर सु ले के सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें । जय पूजत जिन-पद धार सु दे कें, सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें । ऊँ ह्रीं समवसरणस्थथ-केवलिजिनप्रतिमाभ्यः अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला - दोहा भूमि सातवीं जानिये मन्दिर-बीच विशाल । श्रीमण्डप में केवली राजत है जयमाल।। 1277
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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