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________________ केवलज्ञान पूजा प्रारम्भ दोहा भूमि सप्तमी के विर्षे कहे केवली गाय। तिन पद सुर-नर मिल सबै पूजत निर्मल भाय।। ऊँ ह्रीं केवलज्ञानसंयुक्तजिनेन्द्राः अत्र अवतार अवतरत संवौष्ट्। (आह्वानं) ऊँ ह्रीं केवलज्ञानसंयुक्तजिनेन्द्राः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं केवलज्ञानसंयुक्तजिनेन्द्राः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। (सन्निधिकरणम्) अष्टक ('सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें') जय समवसरण मे केवलज्ञानी सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। पूजत सुर-नर मिल भवि प्राणी सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। जय पद्म-द्रह को नीर सु ले के सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। जय पूजत जिन-पद धार सु दे कें, सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। ऊँ ह्रीं समवसरणस्थ-केवलिजिनप्रतिमाभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा। जय मलयागिरि चन्दन घसि वासी सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। जय भव आताप हरे जगवासी सुगुण हम ध्यावे, सुगुण हम ध्यावें। जय पद्म-द्रह को नीर सु ले के सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। जय पूजत जिन-पद धार सु दे कें, सुगुण हम ध्यावें, सुगुण हम ध्यावें। ऊँ ह्रीं समवसरणस्थ-केवलिजिनप्रतिमाभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 1275
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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