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________________ मलयागिरि चन्दन दाह-निकन्दन सहज सुवासी ले हेरा। जिनचरण चढ़ायो मन हरषायो दाह मिटायो भव-केरा।। श्री सप्तपर्णवन समवसरण-धन नैर्ऋतदिशा सु हूजीजे। जय भव-भव शरणं शिवसुख-करणं श्री जिनचरण सु पूजीजे।। ऊँ ह्रीं नैर्ऋत्यदिशायां सप्तपर्णवनवृक्षस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। सुखदास कमोदं धार प्रमोद प्रासुक जलसों प्रक्षालों। उज्ज्वल शुभ कीजे पुंज सु दीजे जिन पूजीजे अघ टालों।। श्री सप्तपर्णवन समवसरण-धन नैर्ऋतदिशा सु हूजीजे। जय भव-भव शरणं शिवसुख-करणं श्री जिनचरण सु पूजीजे।। ऊँ ह्रीं नैर्ऋत्यदिशायां सप्तपर्णवनवृक्षस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। शुभ फूल सुवासी परिमल खासी चित्त हुलासी कर लावो। श्री जिनपद पूजों नर-सुर हूजों काम-नाश दिव शिव-पावों।। श्री सप्तपर्णवन समवसरण-धन नैर्ऋतदिशा सु हुजीजे। जय भव-भव शरणं शिवसुख-करणं श्री जिनचरण सु पूजीजे।। ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यदिशायां सप्तपर्णवनवृक्षस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। पकवान सु साजे मोदक खाजे बहुविध ताजे मालपुआ। देखत दृग-नासा परम हुलासा ले शुभ खासा सुकृत हुआ।। श्री सप्तपर्णवन समवसरण-धन नैर्ऋतदिशा सु हूजीजे। जय भव-भव शरणं शिवसुख-करणं श्री जिनचरण सु पूजीजे।। ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यदिशायां सप्तपर्णवनवृक्षस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1239
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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