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________________ लहि मुक्तिथान अनन्तसुख, तिनको त्रिकाल प्रणाम जो।।11। ऊँ ह्रीं श्रीसुर्णभद्रादिचतुर्णा मुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः पावागिरिशिख रेभ्यः अथवा चेलनानदीतटेभ्यः सिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथा- फलहोड़ी वरग्रामे, पच्छिमभायम्गि द्रोणगिरिसिहरे। गुरुदत्ताइमुणिदा, णिव्वाणगया णमो तेसि।। (ढार परमादी की) फलहोड़ी वर ग्राम, पश्चिम दिशि के माहीं। द्रोणगिरिवर नाम, पर्वत के सिर तांहीं।। गुरुदत्तादि मुनीश, पंचमगति तहँ पाई। तिनि मुनिकों कर जोर, पूजत अर्घ बनाई।।12।। ऊँ ह्रीं श्री गुरुदत्तादिमुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः श्री फलहोड़ीबड़ग्राम पश्चिम दिग्भागस्थद्रोणगिरिसिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथा णायकुयारमुणिदो, बालि महाबालि छेय अच्छेया। अट्ठावय गिरिसिहरे, णिव्वाणगया णमो तेसिं। (ढार परमादी की) नागकुमार मुनीन्द्र, बाल महाबाल जी। छेद अभेद ऋषीन्द्र, तिगुन-माल सुधार जी।। गिरि कैलाश महान, जु शिखरतें परनी। शिविरमणी सुखकार, वन्दन तिननित करनी।। ऊँ ह्रीं श्रीबाल-महाबाल-नागकुमारादिमुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः श्री कैलाशगिरिसिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथा- अच्चलपुर वरणयरे, ईसाणे भाए मेढगिरिसिहरे। सोहुट्ठयकोडीओ, णिव्वाणगया णमो तेसिं।। 122
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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