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________________ उपदेश दयो सब सुख जु राय तब ‘लाल' कवी भाषा बनाय।। दोहा श्री जिन मानस्तम्भ की गुणमाला सुविशाल। जो नर पहिरे कंठ में दिव शिव पावें हाल।। ऊँ ह्रीं चतुर्दिक्सम्बन्धिनीभ्यः मानस्तम्भ-स्थित जिनप्रतिमाभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। अडिल्ल जो बाँचें यह पाठ सरस मन लायकें, सुने भव्य धरि ध्यान सु मन हरषायकें। धन धान्यादिकपुत्र पौत्र सम्पति धरें, नरसुर के सुखभोग बहुरि शिवतिय वरें।। इत्याशीर्वादः । प्रथम प्रसाद भूमि प्रसाद (सुन्दरी छन्द) प्रथम भूमि गली की जानिये तँह सु मानस्तम्भ प्रमानिये। तासु बाँई दाहिनी ओर जू सरस दरवाजे शुभ जो जू।। जान आभ्यन्तर अन्तर गली प्रथमभूमि महाछवि-सौं रली। भूमि चैत्य सु मन्दिर की कही परम सुन्दरता कवि बनि रही।। ऊँ ह्रीं प्रथम-गलीद्वारोभवपाश्वभागे अन्तर्गलीमध्ये चैत्यमन्दिरस्थजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। दोहा प्रथमकोट वेदी प्रथम, दो-दो भाग बखान। चैत्यभूमिता बीच में बाइस भाग-प्रमान।। ॐ ह्रीं सालवेदी-चैत्यभूमि-वलयव्यास-संयुक्त-समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा। 1214
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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