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________________ गाथा- पंडुसुआ तिण्णिजणा, दविडणारिदाण अट्टकोडीओ। सेत्तुजयधिरिसिंहरे, णिव्वाण गया णमों तेसिं।। (छन्द मात्रा 20) पाण्डुसुत तीन नृप सो, देश द्राविड़ तने। आदि वसु कोडि मुनि तरणतारण भने।। शीश सेत्तुञ्जयगिरि-तें परमपद लयो। तिनहिं हम मन वचन, कर सु पूजन ठयो।।4।। ॐ ह्रीं श्रीयुधिष्ठिर-भीमार्जुनादिमुनीनां वसुकोटिप्रमितानां निर्वाणास्पदेभ्यः श्री शत्रुजय __सिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथा- सत्ता जे बलभद्दा, जवणारिदाण अट्टकोडीओ। गजपंथे गिरिसिहरे, णिव्वाणगया णमो तेसिं।। (छन्द मात्रा 20) सात वल भद्र अरु, नृपति जदुवंशिये। आदि वसु कोड़ि मुनि, करम विध्वंसिये। शीस गजपन्थगिरि-तें परमपद लयो। तिनहिं हम मन-वचन, काय कर सिर नयो।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीवलभद्रादिवसुकोटिप्रमितमुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः श्रीगजपन्थसिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथा- राम हणू सुग्गीओ, गव्यगवाक्खो य णीलमहाणीलो। णवणवदीकोडीओ, तुंगीगिरि णिव्वुदे वन्दे।। (ढार भरथरी को) रामहनू सुग्रीवजी, अरुगवयगवाख्य नील अवर महानील जी। इन आदिक दक्ष, तेगुरु पूजों भावसों जी।। 119
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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