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________________ मगसिर असित मनोहर दशमी, तादिन तप आचरना। नृप-कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजों तुम चरना ॥ मोहि राखो हो सरना, श्रीमहावीर जिनरायजी, मोहि राखो हो सरना ॥ ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तप:मंगलमंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। शुकलदशैं वैशाख दिवस अरि, घातिचतुक छयकरना केवल लहि भवि भव-सर तारे, जजों चरन सुख भरना ॥ मोहि राखो हो सरना, श्रीमहावीर जिनरायजी, मोहि राखो हो सरना ॥ ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । कार्तिक श्यामअमावस शिवतिय, पावापुर तें वरना। गनफनिवृन्द जज तित बहुविधि, मैं पूजों भयहरना ॥ मोहि राखो हो सरना, श्रीमहावीर जिनरायजी, मोहि राखो हो सरना ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला - छन्द हरिगीता, २८ मात्रा गनधर असनिधर, चक्रधर, हलधर गदाधर वरवदा, अरु चापधर विद्यासुधर, तिरसूलधर सेवहिं सदा । दुख हरन आनन्द-भरन तारन, तरन चरन रसाल हैं, सुकुमाल गुन-मनिमाल उन्नत, भाल की जयमाल है । घत्ता जय त्रिशला नन्दन, हरिकृत वन्दन, जगदानन्द चन्दवरं । भवतापनिकन्दन, तन कन मन्दन, रहितसपन्दन नयनधरं ॥ तोटक जय केवल-भानु कलासदनं, भवि-कोक-विकासनकंज-वनं । 1184
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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