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________________ तजि राजमती व्रत लीनो, सित सावन छट्ठ प्रवीनो। शिवनारी तबै हरषाई, हम पूजै पद शिरनाई।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला-षष्ट्यां तपोमंगल- मंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।31 सित आश्विन एकम चूरे, चारों घाती अति करे। लहि केवल महिमा सारा, हम पूजै अष्ट प्रकारा।। ॐ ह्रीं आश्विनशुक्ल प्रतिपदि केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।41 सित षाढ़ अष्टमी चूरे, चारों अघातिया करे। शिव ऊर्जयन्ततें पाई, हम पूर्जे ध्यान लगाई।। ऊँ ह्रीं आषाढ़शुक्ला-अष्टम्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।5। जयमाला (दोहा) श्याम छवी तनु चाप दश, उन्नत गुननिधि-धाम। शंख-चिह्न पद में निरखि, पुनि-पुनि करों प्रनाम।।1। (पद्धरी छंद) जै जै जै नेमि जिनिंद चन्द, पितु-समुद देन आनन्दकन्द। शिवमात-कुमुद-मनमोददाय, भविवृन्द-चकोर सुखी कराय।।2।। __ जयदेव अपूरव मारतंड, तुम कीन ब्रह्मसुत सहस खंड। । शिवतिय-मुख-जलज-विकाशनेश, नहिं रहो सृष्टि में तम अशेष।।3।। 1174
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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