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________________ पंचकल्याणक गरभागम-मंगलचारा, जुग आश्विन श्याम उदारा। हरि हर्षि जजे पितुमाता, हम पूजे त्रिभुवन-त्राता।। ऊँ ह्रीं आश्विनकृष्णा-द्वितीयायां गर्भावतरणमंगल-प्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।। जनमोत्सव श्याम असाढ़ा, दशमी दिन आनन्द बाढा। हरि मन्दर पूजे जाई, हम पूजें मन-वच-काई।। ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णा-दशम्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।2। तप दुद्धर श्रीधर धारा, दशमी कलि षाढ़ उदारा। निज आतम रस पूर्ण लायो, हम पूजत आनन्द पायो।। ऊँ ह्रीं आषाढकृष्णा-दशम्यां तपोमंगल- मंडिताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। सित मंगसिर ग्यारस चूरे, चव घाति भये गुण पूरे। समवसृत केवलधारी, तुमको नित नौति हमारी।। ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला-एकादश्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1168
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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