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________________ श्री नमिनाथजिन-पूजा रोड़क श्री नमिनाथ जिनेन्द्र नमों विजयारथ नन्दन। विख्यादेवी-मातु सहज सब पाप निकन्दन।। अपराजित तजि जये मिथिलपुर वर आनन्दन। तिन्हें सु थापों यहाँ त्रिधा करि के पदवन्दन।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) सुरनदी-जल उज्ज्वल पावनं, कनक-भंग भरों मन-भावनं। जजतु हौं नमिके गुण गायके, जुग-पदांबुज प्रीति लगायके।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।। हरिमलय मिलि केशरसों घसों, जगतनाथ भवाताप को नसों।। जजतु हौं नमिके गुण गायके, जुग-पदांबुज प्रीति लगायके।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2। गुलक के सम सुन्दर तंदुलं, धरत पुंज सु भुंजत संकुलं।। जजतु हौं नमिके गुण गायके, जुग-पदांबुज प्रीति लगायके।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।। कमल केतकी बेलि सुहावनी, समरसूल समस्त नशावनी।। जजतु हौं नमिके गुण गायके, जुग-पदांबुज प्रीति लगायके।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4 1166
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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