SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अरहनाथजिन-पूजा (छप्पय छन्द) तप-तुरंग-असवार, धार तारन-विवेक कर। ध्यान-शुकल-असि-धार शुद्ध-सुविचार सुबखतर।। भावन-सेना, धर्म-दशों सेनापति थापे। रतन-तीन धरि सकति, मंत्रि-'अनुभो निरमापे।। ___ सत्तातल मोह-सुभटि धुनि,त्याग-केतु-शत अग्र धरि। इह-विध समाज सज राज को, अर-जिन जीते कर्म-अरि।। ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) अष्टक (छंद-त्रिभंगी) कन-मनि-मय झारी, दृग-सुखकारी, सुर-सरितारी नीर भरी। मुनिमन-सम उज्ज्वल, जनम-जरा-दल, सोलैं पद-तल धारकरी। प्रभु दीनदयालं, अरि-कुल-कालं, विरद विशालं सुकुमालं। हरि मम जंजालं, हे जगपालं, अरगुन-मालं, वरभाल।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।। 1148
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy