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________________ तज्यो षट्खंड विभौ जिनचंद, विमोहित-चित्त चितार सुछंद। धरे तप एकम शुद्ध विशाख, सुमग्न भये निज-आनंद चाख।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्ल प्रतिपदि नि:क्रमणमहोत्सवमंडिताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय ___ अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। सुदी तिय चैत सु चेतन शक्त, चहूँ-अरि छयकरि तादिन व्यक्त। __ भई समवसृत भाखि सुधर्म, जजौं पद ज्यों पद पाइय पर्म।। ॐ हीं बैशाखशुक्ला-तृतीया केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।41 सुदी वैशाख सु एकम नाम, लियो तिहि द्यौस अभय-शिवधाम। जजे हरि हर्षित मंगल गाय, समर्चतु हों तुहि मन-वच-काय।। ॐ हीं वैशाखशुक्ल प्रतिपदि मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5। जयमाला (अडिल्ल छन्द) षट्खंडन के शत्रु राजपद में हने। धरि दीक्षा षटखंडन पाप तिन्हें दनें।। त्यागि सुदरशन चक्र धरम चक्री भये। करमचक्र-चकचूर सिद्ध दिढ-गढ़ लये।1। ऐसे कुंथु जिनेश तने पदपद्म को। गुन-अनंत-भंडार महासुख-सद्मको।। पूजों अरघ चढ़ाय पूरणानंद हो। चिदानंनद अभिनंदन इन्द्रगन-वंद हो।1। 1145
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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