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________________ मुक्ताफल-सम उज्ज्वल अक्षत, सहित मलय ले री। पुंज धरों तुम चरनन आगे अखय-सुपद दे री।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।। कमल केतकी बेला दीना, सुमन सुमन-से री। समरशूल निरमूल-हेतु प्रभु, भेंट करों तेरी।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4। घेवर बावर मोदन मोदक, मृदु उत्तम पेरी। तासों चरन जजों करुनानिधि, हरो छुधा मेरी।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5। कंचन-दीपमई वर-दीपक, ललित-जोति घेरी। सो ले चरन जजों भ्रम-तम-रवि, निज-सुबोध देरी।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6। देवदारु हरि अगर तगर करि चूर अगनि खे री। अष्ट करम ततकाल जरे ज्यों, धूम धनंजे री।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7। 1143
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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