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________________ जयमाला रथोद्धता छन्द चन्द्रवर्त्म तथा चन्द्रवत्स (११ वर्ण लाटानुप्रास) शान्ति शान्तिगुन मंडिते सदा, जाहि ध्यावत सुपंडिते सदा । मैं तिन्हें भगतिमंडिते सदा, पूजि - हों कलुष-हंडिते सदा ॥१॥ मोक्षहेतु तुम ही दयाल हो, हे जिनेश गुन रत्नमाल हो। मैं अबै सुगुनदाम ही धरों, ध्यावते तुरित मुक्ति तीवरों ॥२॥ पद्धरि (१६ मात्रा) जय शान्तिनाथ चिद्रूपराज, भवसागर में अद्भुत जहाज। तुम तजि सरवारथसिद्धि थान, सरवारथजुत गजपुर महान ॥३॥ तित जनम लियो आनंद धार, हरि ततछिन आयो राजद्वार । इन्द्रानी जाय प्रसूत-थान, तुमको कर में लै हरष मान ॥४॥ हरि गोद देय सो मोदधार, सिर चमर अमर ढारत अपार । गिरिराज जाय तित शिला पाण्डु, तापै थाप्यो अभिषेक माण्ड ॥५॥ तित पंचम उदधि तनों सुवार, सुरवर कर करि ल्याये उदार । तब इन्द्र सहसकर करि अनन्द, तुम सिर धारा ढार्यो सुनन्द ॥६॥ अघ घघ घघ घघ धुनि होत घोर, भभ भभ भभ धध धध कलशशोर । दृम दृम दृम दृम बाजत मृदंग, झन नन नन नन नन नूपुरंग ॥७॥ तन नन नन नन नन तनन तान, घन नन नन घंटा करत ध्वान । ताथेई थेई थेई थेई थेई सुचाल, जुत नाचत नावत तुमहिं भाल ॥८॥ चट चट चट अटपट नटत नाट, झट झट झट हट नट शट विराट । ___ इमि नाचत राचत भगत रंग, सुर लेत जहाँ आनंद संग ॥९॥ इत्यादि अतुल मंगल सुठाठ, तित बन्यो जहाँ सुरगिरि विराट । पुनि करि नियोग पितुसदन आय, हरि सौंप्यौ तुम तित वृद्ध थाय ॥१०॥ 1140
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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