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________________ सुमन सुमन-सम सुमणि-थाल भर, सुमनवृन्द विहसाई। सुमन्मथ-मद-मंथनके कारन, चरचों चरन चढ़ाई।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी। पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4। घेवर बावर अर्द्ध-चन्द्र-सम, छिद्र-सहस्र विराजै। सुरस मधुर तासों पद पूजत, रोग असाता भाजै।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी। पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।51 सुन्दर नेह-सहित वर-दीपक, तिमिर-हरन धरि आगे। नेह-सहित गाऊँ गुन श्रीधर, ज्यों सुबोध उर जागे।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी। पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6। अगर तगर कृष्णागर तव दिव, हरिचन्दन करपूरं। चूर खेय जलजवन मांहि जिमि, करम जरें वसु क्रूरं।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी। पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7। 1132
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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