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________________ सित भादव चौदस लीनों, निरवान सुथान प्रवीनों। पुर चंपाथानक सेती, हम पूजत निजहित हेती। ऊँ ह्रीं भाद्रशुक्ल-चतुर्दश्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।51 जयमाला (दोहा) चंपापुर में पंच वर, कल्याणक तुम पाय। सत्तर धनु तन शोभनों, जै जै जै जिनराय।1। महासुखसागर आगर-ज्ञान, अनंत-सुखामृत मुक्त महान। महाबलमंडित खंडितकाम, रमाशिवसंग सदा बिसराम।2। सुरिंद फनिंद खगिंद नरिंद, मुनिंद जजें नित पादारविंद। प्रभु तुम अंतरभाव विराग, सुबालहितें व्रतशीलसों राग।3। कियो नहिं राज उदास सरूप, सुभावन भवत आतमरूप। अनित्य-शरीर प्रपंच-समस्त, चिदातम नित्य सुखाश्रित वस्त।4। अशर्न नहीं कोउ शर्न सहाय, जहां जिय भोगत कर्मविपाय। निजातम को परमेसुर शन, नहीं इनके बिन आपद हर्न।5। जगत्त जथा जल-बुदबुद येव, सदा जिय एक लहै फलभेव। अनेक प्रकार धरी यह देह, भ्रमें भवकानन आन न नेह।6। अपावन सात कुधात भरीय, चिदातम शुद्ध सुभाव धरीय। धरे इनसों जब नेह तबेव, सुआवत कर्म तबै वसुभेव।7। जबै तन-भोग-जगत्त-उदास, धरें तब संवर निर्जर आस। करे जब कर्मकलंक विनाश, लहे तब मोक्ष महासुखराश।8। तथा यह लोक नराकृत नित्त, विलोकियते षट्-द्रव्यविचित्त। सु आतमजानन बोधिविहीन, धरे किन तत्त्व प्रतीत प्रवीन।9। 1118
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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