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________________ सित मंगसिर मासा तिथि सुखरासा, एकम के दिन धारा जी। तप आतमज्ञानी आकुलहानी, मौन सहित अविकारा जी।। सुरमित्र सुदानीके घर आनी, गो-पय पारन कीना जी। तिनको मैं वन्दौं पापनिकंदौं, जो समतारस-भीना जी।। ॐ ह्रीं माघशीर्षशुक्ला-प्रतिपदायां तपोमंगल- मंडिताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। सित कार्तिक गाये दोइज धाये, घातिकरम परचंडा जी। केवल परकाशे भ्रमतम नाशे, सकल सार सुख मंडा जी।। गनराज अठासी आनंदभासी, समवसरण वृषदाता जी। हरि पूजन आयो शीश नमायो, हम पूजें जगत्राता जी।। ऊँ ह्रीं कार्तिकशुक्ला-द्वितीयायां ज्ञानमंगल- मंडिताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।41 आसिन सित सारा आ3 धारा, गिरिसमेद निरवाना जी। गुन अष्ट-प्रकारा अनुपम धारा, जय-जय कृपा निधाना जी।। तित इन्द्र सु आयौ, पूज रचायौ, चिह्न तहाँ करि दीना जी। मैं पूजत हों गुन ध्यान महीसौं, तुमरे रसमें भीना जी।। ऊँ ह्रीं अश्विनशुक्ला-अष्टम्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।51 जयमाला (दोहा) लच्छन मगर सुश्वेत तन तुंग धनुष शत एक। सुरनर-वंदित मुकतपति, नमों तुम्हें शिर टेक।1। पुहुपदन्त गुनवरन है, सागरतोय समान। क्योंकर-कर अंजुलिनकर, करिये तासु प्रमान।1। 1101
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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