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________________ पंचकल्याणक छन्द तोटक (वर्ण १२) कलि पंचम चैत सुहात अली, गरभागम मंगल मोद भली। हरि हर्षित पूजत मातु पिता, हम ध्यावत पावत शर्म सिता ॥ ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णपञ्चम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । कलि पौषइकादशि जन्म लयो,तब लोकविषै सुख थोक भयो। सुरईश जजें गिरशीश तबै, हम पूजत हैं नुत शीश अबै ॥ ॐ ह्रीं पौषकृष्णैकादश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। अन तप दुद्धर श्रीधर आप धरा, कलि पौष इग्यारसि पर्व वरा । निज ध्यानवि लवलीन भये, धनि सो दिन पूजत विघ्नगये ॥ ॐ ह्रीं पौषकृष्णैकादश्यां तप:मंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । वर केवलभानु उद्योत कियो, तिहुँ लोक तणों भ्रम मेट दियो । कलि फाल्गुन सप्तमी इन्द्र जजे, हम पूजहिं सर्व कलंक भजे ॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णसप्तम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । सित फाल्गुन सप्तमि मुक्त गये, गुणवन्त अनन्त अबोध भये । हरि आय जजें तित मोद धरे, हम पूजत ही सब पाप हरे ॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्लसप्तम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 1095
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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