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________________ दोहा तीन बरस वसुमास दिन, पंद्रह रहे सु सार । महावीर शिवपुर गये, चौथे काल मँझार। ऊँ ह्रीं निर्वाणकल्याणप्राप्ताय महावीरजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। निर्वाणकाड विधान के बाद है - (त्रिभंगी छन्द) श्री वीर जिनेसुर, नमत सुरेसुर, वसु विधिकर जुग पद चरचं। वहु तूर बजावें जिनगुन गावें, ध्यावें पावें मुक्तिपदं।। इत्याशीर्वादः ऊँ ह्रीं निर्वाणमंगलमण्डितमहावीरजिनेन्द्राय नमः। ( इस मन्त्र का 108 जाप्य देना चाहिए ) वर्तमान चतुर्विंशतिजिन-निर्वाणभूमि पूजा दोहा मंगलकारी सर्व जिन, दाता परम चितारी । फलद रचाकर चित्त हम, पूजत कर सिर धारि।।1।। (अडिल्ल) दीप अढ़ाई माहिं, मेरुपन सोभिते । पंच विदेह सु भूमि, तहाँ मन मोहते ।। तिन मधि तीर्थंकर, मंगल सुखदाय जी। रहें सदा जहाँ इन्द्र, जजें शिरनाय जी।। 107
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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