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________________ पंचकल्याणक-अर्ध्यावली (छन्द - हंसी मात्रा 15 ) माता-गर्भविषै जिन आय, फागुन - सित-आठ सुखदाय। सेयो सुरतिय छप्पन-वृंद, नानाविधि मैं जजौं जिनंद।। ॐ ह्रीं फाल्गुन शुक्लाष्टम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्री संभावनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1। कार्तिक-सित-पूनम तिथि जान, तीन- ज्ञान- जुत जनम प्रमाण। धरि गिरिराज जजैं सुरराज, तिन्हें जजों मैं निज-हित-काज।। ॐ ह्रीं कार्तिक शुक्लपूर्णिमायां जन्ममंगलमंडिताय श्रीसंभावनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 2। मंगसिर-सित-पून्यू तप धार, सकल संग-तजि जिन अनगार। ध्यानादिक-जल जीते कर्म चचौं चरण देहु शिव-शर्म ।। ॐ ह्रीं मार्गशीर्ष-पूर्णिमायां तपमंगलमंडिताय श्री संभावनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । 3। कार्तिक-कलि तिथि चौथ महान्, घाति घात लिय केवलज्ञान । समवसरनमहँ तिष्ठे देव तुरिय चिह्न चर्चां वसु-भेव।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्ण चतुर्थीदिने ज्ञानमंगलमंडिताय श्री संभावनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।4। 1065
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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