SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1049
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥ गोशीर कपूर मिलाय, केशर रंग भरी। जिनचरणन देत चढ़ाय, भव-आताप-हरी।। चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही ।। ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।2।। तंदुल सित सोमसमान, सुन्दर अनियारे । मुक्ताफल की उनमान, पुंज धरों प्यारे।। चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही ।। ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा॥3॥ वर कंज कदंब कुरंड, सुमनसुगन्ध भरे। जिन अग्र धरौं गुनमंड़, कामकलंक हरे॥ चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥ मनमोहन मोदक आदि, सुन्दर सद्य बने । रसपूरित प्रासुक स्वाद, जजत क्षुधादि हने।। चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही ॥ ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।5।। तम-खंडन दीप जगाय, धारों तुम आगे। सब तिमिर मोह क्षयजाय, ज्ञानकला जागै ।। चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही ॥ ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥6॥ 1049
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy