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________________ जय बने अनादि काल जान, उन कहत अकीरतम है सुजान। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।। जय पुरुष किये रचना सुसार, जिन कृत्रिम नामसु सुखद सार। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।। जय अधोमध्य अरु ऊर्ध्व जान, जय तीनलोक में निलय आन। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।। जहां बैठ भविक आनन्द पाय, जय जिन गुण गावे प्रीति लाय। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।। हम नमन करे उन भवन सार, सूरजमल भक्ति उर धार धार।। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।। घत्ता जय जय जिन मन्दर पूज पुरन्दर सुन्दर मन से बन्दे है। हम भी नित बन्दे बहु आनन्दे काटे भव के फन्दे है।। ऊँ ह्रीं त्रैलोक्यवर्ति कृत्रिमाकृत्रिम जिन चैत्यालेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा। दोहा जिनागार जिनराज के पूजे मन वच काय। नाशे अघ बहु काल के पावे सुख अधिकाय।। इत्याशीर्वादः 1046
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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