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________________ जय मिथ्या तिमिर विनाश सूर्य, जय शिव मग दर्शक हो सु धूर्य । जिन ध्यान धरा तज के सुमान, नहि रहा उसे संशय कुज्ञान ॥3॥ जय तीन शतक छत्तीस जान, मति ज्ञान भेद लखिए प्रमाण । श्रुत दोय अनेकों भेद ठान, जय द्वादशांग जिनवर बखान ॥4॥ जिन गण धर नरपति ऋद्धि खास, जय पुण्य पुराकृत को प्रकाश । जय लोक अलोकरु तीन काल, कह लक्षण चारों गति सुहाल || 5 || जय कर्ण योग द्युति है पिछान, है जिनवर की यह सत्य वाण। जय चारित्रं जिन कहत सोई, जय जिसमें श्रावक धर्म होई ॥6॥ चरणानुयोग तसु जान नाम, जय पूजे तज हम सर्व काम। जय जीवा जीवसु पुण्य पाप, जय सप्त तत्व का है कलाप॥7॥ द्रव्यानुयोग चौथा कहाय, ये चार योग जिनवर बताय। जय इकसो बारह कोडि जान, जय लाख तिरासी है प्रमाण ॥8॥ जय सहस अठावन पंचमान, पद द्वादशांग जिनवर बखान । जय कोटि इकावन अष्ट लाख, शत छे हजार चोरासी भाख॥9॥ जय बीस एक अध श्लोक धाय, जय एक एक पद को बताय। जय दोष रहित जिन वाणि मात, जय तुम पद नावे जोड़ हाथ ||10| तुम सन्त सुन योगीन्द्र ध्याय, वह भव दधि से झट पार जाय । जय आदि अन्त इक सार आप, सूरजमल तब करता सुजाप ।। धत्ता जय जय जिनवाणी हैं श्रद्धानी संशय हानि पू है। जय तत्व प्रकाशक भ्रमतम नाशक ज्ञान निकाशक हूजत है। ऊँ ह्रीं श्री जिन सुखोत्पन्न द्वादशांग जिनवाणी मातायै अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। दोहा वाणी है अरहन्त की जो भवि कंठ लगाय । पूजत हर्ष चढ़ाय कर केवल ज्ञान उपाय।। 1037
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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