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________________ गणधरा अरु हो तीर्थ करा चरित्र पावन जामे सुख भरा। सहस्र छप्पन लक्ष सु पांच है अंग ज्ञातृ कथ सु सांच है।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित पंचाशत् सहस्राधिक पंच लक्ष 556000 पद प्रमाण ज्ञातृ कथांगाय ऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।20। उपासका ध्ययनंगं है सही चरित श्रावक का सु कहत ही। सहस सप्तति लक्षैकादशा कहत पद जिन देवसु मनवसा।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देवकथित सप्तति सहस्राधिकैकादश लक्ष 1170000 पद प्रमाण उपसकाध्यनंगायऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥21॥ होय तीर्थंकर के सामने, तीर्थ प्रति मुनिवर दश दश बने। कष्ट सहया उन मनिराय ने पाई शिवनारी गुरु राय ने।। चरित्र है जिनका उसमें सही नाम अन्तःकृत दश है यही। सहस अष्टाविंशति लक्ष हैं कहत तेविस जिन पद दक्ष हैं।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित अष्टाविंशति सहस्राधिक त्रयोविंशति लक्ष 2328000 पद प्रमाण अन्तःकृत दशांमायाऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।22॥ होय तीर्थंकर जिन राय जी, तीर्थप्रतिदश दश मुनिराय जी। सहन कर उपसर्ग महान जी पाय पंचोत्तर पद आन जी।। हो कथा जिनकी उस अंग में अनुत्तरा उपपादिक भंग में। लक्ष वान्नु हजार चवालिसा कहत पद अनुपम शिव नारीशा।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित चतुष्चत्वारिंशन् सहस्राधिक द्विनवति लक्ष 9244000 पद प्रमाण उपपादिकदशांगायऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।23। 1028
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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