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________________ व्याकरण अनुसार शब्द शुद्ध उच्चारणे। करत न प्रमाद जीव अशुद्ध शब्द टारते।। होत शब्द शास्त्र जिन वदन ते निकारते। पूजहूँ द्रव्य अष्ट भक्ति उर धारते।। ॐ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित सम्यक शब्दाचार विनयेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।2।। श्लोक के अर्थ को चित्त में उतारते। हो यथार्थ शुद्ध ही गलत न चितारते।। होत अर्थचार जिन वदन ते निकारते। पूज, द्रव्य अष्ट भक्ति उर धारते।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित अर्थाचार विनयेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।3।। अर्थ अरु शब्द शुद्ध ध्यानमें लावते। करत न अशुद्ध पाठ अर्थ में लुभावते।। होत उभयचार जिन कहत सु भावते। पूजहँ द्रव्य अष्ट भक्ति ना छिपावते॥ ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित उभयाचार विनयेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥ करत स्वाध्याय न अकाल में जीव ही। बाँधते न पाप समय वांचते सदीव ही।। होत कालचार जो कहत जिनदेव ही। पूजहूं द्रव्य अष्ट भक्ति जो सदैव ही।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित कालाचार विनयेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।5। हस्त पैर धोयकर करत स्वाध्याय जी। वस्त्र भी शुद्ध हो शुद्ध निज काय जी।। कहत विनय चार शिव मार्ग का उपाय ही। पूजहूं द्रव्य अष्ट भक्ति जो सदैव ही।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित विनयाचार विनयेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।6।। श्लोक के अर्थ का चित्त में उतारते। हो यथार्थ शुद्ध ही गलत न विचारते।। करत स्वाध्याय जिन वाणि का आप जी। भूलते ना कभी पाप सर्व जाय जी।। होत उपधना-चार कहत गणराज जी। पूजहूं द्रव्य अष्ट भक्ति उर ध्याय जी।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित उभयाचार विनयेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।7। 1017
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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