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________________ जो है कुदेबा राग युक्त भार्या के साथ में। हस्त में त्रिशूल राखे गंग निकल माथ में।। है उपासक इनके प्राणी उन प्रशंसा धारते। मलिन का सम्यक रतन को तुच्छ भव स्वीकारते।। ॐ ह्रीं कुदेव उपासक अनायतन मल दोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। अन्तर में धारें राग को बाहर में बम्बर ले घने । धारले कुमेष मिथ्या जग में गुरु जो है वने। हे उपासक, इनके प्राणि उन प्रशंसा धारते। मलिन का सम्यकरतन को तुच्छ भव स्वीकारते।। ऊँ ह्रीं कुगुरु उपासका अनायतन मल दोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। सर्वज्ञ का भाषित न होवे अल्प ज्ञानी का बना। एकान्त मत को पोषता जो शास्त्र मिथ्या है घना ।। है उपासक, इनके प्राणि उन प्रशंसा धारते। मलिन का सम्यकरतन को तुच्छ भव स्वीकारते।। ऊँ ह्रीं कुशास्त्रोपासका अनायतन मल दोष रहित सम्यग्दर्शन जिन धर्मेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा। 7 भय दोहे नष्ट न होवे इष्ट मम ना अनिष्ट मिल जाय। भय करता वह रात दिन समकित मल उपजाय।। ॐ ह्रीं इह लोक भय मल दोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1॥ स्वर्गगति या दुर्गति होगा चित भरमाय। भय करता वह रात दिन समकित मल उपजाय।। ऊँ ह्रीं परलोक भय मल दोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥2॥ 1015
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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