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________________ श्री कुंथुनाथ - जिन पूजा Shree kunthunaath-jin puja (छन्द माधवी तथा किरीट-वर्ण 14 मात्रा ) अज-अंक अजै-पद राजे निशंक, हरे भव-शंक निशंकित-दाता। मदमत्त-मतंग के माथे गँथे मतवाले, तिन्हें हने ज्यों अरिहाता । गजनागपुरै लियो जन्म जिन्हौं, रवि के प्रभु नंदन श्रीमति माता। सह-कुंथु सुकुंथुनि के प्रतिपालक, थापूं तिन्हें जुत-भक्ति विख्याता। ओं ह्रीं श्री कुंथुनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट्! (आह्वाननम्) ओं ह्रीं श्री कुंथुनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठ: ठ: ! (स्थापनम् ) ओं ह्रीं श्री कुंथुनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट्! (सन्निधिकरणम्) ( चाल लावनी मरहठी की, लाला मनसुखरायजी कृत) कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी । भव- सिन्धु पर्यो हूं नाथ, निकारो बाँह -पकर मेरी ॥ प्रभु सुन अरज दासकेरी, नाथ सुन अरज दास-केरी । जगजाल - पर्यो हूं वेगि निकारो, बाँह पकर मेरी ॥ सुर-सरिता को उज्ज्वल-जल भरि, कनक-भृंग भेरी । मिथ्या-तृषा निवारन-कारन, धरूं धार नेरी ॥ ओं ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु - विनाशाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । १ । बावन -चंदन कदलीनंदन, घसिकर गुन टेरी। तपत मोह - नाशन के कारन, धरूं चरन नेरी || कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। भव- सिन्धु पर्यो हूं नाथ, निकारो बाँह - पकर मेरी || ओं ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय भवताप - विनाशाय चदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२। मुक्ताफल-सम उज्ज्वल अक्षत, सहित मलय लेरी | पुंज धरूं तुम चरनन आगे, अखय-सुपद दे ।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी । 553
SR No.009252
Book TitleJin Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages771
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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