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________________ ऋजुकूल सरित तट तिष्ठे, वैशाख सुदि दशमी है महावीर जी। प्रभु शुक्ल ध्यान के धारी, घाति चउ नाश किये हैं महावीर जी।। हुई समवसरण शुभ रचना, भविक जन हितकारी महावीर जी। बिन इच्छा ध्वनि खिरी है, कि प्रभु की अमृतवाणी महावीर जी।। बाजे समवशरण शहनाई, कि गगन में वीर आये महावीर जी॥4॥ ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा। जब कार्तिक अमावस आई, कि दीपावली आई महावीर जी। घड़ी स्वाति नखत की आई, कि प्रभु मुक्ति पाई महावीर जी।। प्रभु पूर्ण परम पद पाये, कि अष्टम भू पाये महावीर जी। सब जयबोले धरती पर, कब निर्वाण पाये, महावीर जी।। बाजे आत्म नगर शहनाई, कि वीर प्रभु मोख पाये महावीर जी॥5॥ ऊँ ह्रीं कार्तिककृष्णाअमावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्ध्यं निर्वपामीति स्वाहा। जाप्य 'ॐ ह्रीं अर्हं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय नमो नमः।' जयमाला दोहा बाल ब्रह्मचारी प्रभु, महावीर जिननाथ । गुण वर्णन कैसे कहूँ, अतः धरूँ पद माथ।।1॥ 183
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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